प्रांच्य विधा




ज्योतिष के विषय में बात करने से पहले चाहुगी की हम हमारी प्रांच्य विधाओ के सन्दर्भ में भी जाने |मै समझती हु जो प्रत्यक्ष है वही प्रमाणिक है |पर प्रमाण के लिए आधार की भी आवश्यकता होती है हमारे प्राचीन मनीषियों ने अपने अथक प्रयास और दिव्या ज्ञान से प्रकृति के रहस्यों का न केवल दर्शन किया बल्कि प्रमाणित भी किया |वर्तमान में हम कितनी भी तार्किक दृष्टिकोण  क्यों न रखे ,कही न कही हम अपनी प्राचीन संस्कृतियों से परे नहीं रह सकते |विज्ञानं की केवल भाषा होती है  जो किसी निर्माण तक ही निहित होती है |,ज्ञान का अपना विस्तार  होता है जो अनंत है शाश्वत है |जो प्रकृति का  नियामक भी है और नियंता भी | वेदों और उपनिषदों में केवल ज्ञान का अध्यन है पर ज्योतिष शास्त्र इस महान ज्ञान को प्रमाणित करने का आधार |

ज्योतिष  :-ज्योतिष जानने से ज्यादा  ज्योतिष को समझना महत्वपूर्ण है उदहारण के लिए किसी व्यक्ति या वास्तु की उत्त्पत्ति का समय उस के निर्माण के साथ साथ उसके विध्वंश के कारणों को भी लेकर निर्मित होता है |सबकी अपनी एक समय सीमा एक अवधि बंधी है |एक निश्चित्त समय में उत्त्पत्ति और एक निश्चित समय में विलय की प्रक्रिया से हम सभी बंधे हुए है |इसी समय सीमा के गुण -अवगुण ,पाप -पुण्य ,धर्म -अधर्म ,कर्म -अकर्म का अध्यन ही "ज्योतिष "शास्त्र है |ग्रह,नक्षत्र ,तारागण इस महान ज्ञान के मूलाधार है जो जन्मकालीन समय से कर्मानुसार हमारे स्वयं के भचक्र में एक ब्रम्हांड निर्मित करते है और अपने शुभ -अशुभ फल से संचरित होते है |ज्योतिष का ज्ञान अपने आप में असीमित है |इस ज्ञान को प्राप्त करने के समय हमारे ऋषि -मुनियों ने उतना ही उत्साह और प्रसन्नता प्राप्त किया होगा जितना की वर्तमान के अत्याधुनिक यंत्रो से लेंस हमारे वैज्ञानिक  किसी ग्रहों की खोज कर वहां जीवन तलाशते नजर आते है |बात यहाँ किसी तत्व की विवेचना या अध्यन से नहीं तत्व की उत्त्पत्ति के कारणों से है |

तंत्र :-"तंत्र "अर्थात system .किसी व्यक्ति या वस्तु को गति देने वाला एक "माध्यम "जिसमे से गुजर कर जीवन की जीवन्तता को स्पष्ट हम देख पाते है महसूस कर सकते है |यह संसार तरंगो का मायाजाल है |जिससे हम बंधे हुए है |सूर्य की अपनी एक नियत उर्जा शक्ति होती है और उस उर्जा शक्ति का संचार उसकी अपनी कक्षाक्रम तक होता है जितना वह दृश्यमान है |मैंने केवल एक ही सूर्य को देखा है पर कहां जाता है ग्रहों एवं उपग्रहों के भी अपने कई सूर्य और चन्द्रमा है | सूर्य की ऊर्जा एक बहुत बड़ा तंत्र ही है जिसमे हमारी नहीं समस्त ब्रम्हांड की  प्रकृति संचारित है | 
विज्ञानं की विद्ध्यार्थी हूँ |पदार्थो में क्रियात्मक उर्जा शक्ति का मैंने काफी अध्यन भी किया है किसी पदार्थ की अपनी गुणवत्ता अन्य पदार्थ के मिलने पर एक नए यौगिकक्रिया के साथ  एक नये  मिश्रण का निर्माण करते है |रासायनिक क्रिया के पश्चात पदार्थो का अपघटन या विघटन दो अलग -अलग परिणामो के साथ प्रदर्शित होते है |जिसमे सकरात्मकता और नकरात्मकता दोनों ही परिणाम निहित होते है | यही "तंत्र " के साथ होता है |हमारा तंत्र हमारी अपनी सोच है |हम जहाँ सकरात्मक है हमारे अन्दर अच्छे विचार जीवन में प्रगति की और हमें प्रेषित करते है वही यदि हमारे अन्दर नकरात्मकता  विचार हो तो हम अपनी उर्जा शक्ति को एक ऐसे भ्रमजाल की ओर ले जाते है जहाँ दुसरे के साथ हमारे स्वयं का भी पतन होने लगता है |वर्तमान में "तंत्र "की बात करे तो लोगो के मन में "तंत्र क्रिया या तंत्र करने वाले तांत्रिक का विचार आ जाता है |तंत्र को लेकर एक भय एक उद्वेग आज भी कौतूहलं का विषय बना हुआ है |सच तो यह है की जहा मनोबल डिगा व्यक्ति स्वयं बाधित हो जाता है |प्राचीन समय में अश्त्र -शस्त्र के अलावा "तंत्र "का प्रयोग अपने शत्रुओ को कमजोर करने के लिए किया जाता था |तंत्र अर्थात " तरंग "को माध्यम बना कर व्यक्ति विशेष को सम्प्रेषण द्वारा सकरात्मक और नकारात्मक ऊर्जाशक्ति भेज दिया जाता था जहाँ शत्रु स्वयं बलहीन हो कर पराजित हो जाते थे (जिसे ,इंद्रजाल ,या तिलस्मी शक्ति की संज्ञा दे दी जाती थी)  |उदाहरण के लिए प्रत्येक जीव में स्वयं का उर्जा केंद्र भी है जो प्रकृति के साथ तारतम्य स्थापित करने में हमारी मदद करता है |यह शक्ति कई बार वायवी शक्तिओ के अधीन भी हो जाती है |जहाँ अचानक हमारा स्वास्थ बिगड़ जाता है |या फिर शरीर का अफरा भुतोंमाद अर्थात "वात"विकार को पैदा कर देता है जिसे भी "तंत्र "से जोड़ कर लोग विश्वास एवं अंधविश्वास के बीच की कड़ी मान लेते है |

यन्त्र :-अर्थात "माध्यम "यदि हम यन्त्र की कल्पना करे तो हमारा शरीर ही जीता जागता "यन्त्र " है |जिसमे १८०००देव शक्तिया संचारित है  जो मूलाधार से सहस्त्रसार तक आत्म जागरण की ओर हमे प्रेरित करते रहती है किन्तु इन सब बातो से परे हम सांसारिक मोह माया के वश में केवल धर्म -अधर्म ,पाप -पुण्य ,के फेरे में पड़े रहते है |प्रत्येक वस्तु का अपना एक अलग ही विधान होता है  वो चाहे पेड़ पौधे हो या जीव-जंतु |हमारे मनीषियों ने अपने शोधपरक  ज्ञान को व्यवस्थित करने के लिए यंत्रो की कल्पना की |साक्षात् भगवान् को सर्वतोभाद्रमंडल के रूप में अंकित कर 64 हजार देवीदेवताओ ,ग्रह नक्षत्रो ,दिन ,मास,तिथि ऋतू आदि के रूप में यन्त्र के रूप में इस महान  यन्त्र में स्थापित किया  जो साक्षात् ब्रम्हांड ही है ओर इस यन्त्र की पूजार्चना साक्षात् ब्रम्ह को प्राप्त करने के जैसा ही है |यन्त्र अर्थात माध्यम वो वायु यान हो या पुष्पक विमान सभी प्रत्यक्ष और  परोक्ष रूप से ज्ञान और तप  के द्वार निर्मित वस्तुए है |

योग :-योग का अर्थ ही ध्यान धारणा और समाधि से है |स्वयं केअंतरपिंडिय ब्रम्हांड का मनन करना ही योग है |अत्यधिक परिश्रम और भागदौड का जीवन या तो अशांति दे जाता है या रोग |उचित -अनुचित आहार -विहार  दैनिकचर्या में स्वस्थता दे जाता है या फिर रोग |योग एक ऐसा माध्यम है जहाँ बिना किसी औशधि के व्यक्ति स्वास्थलाभ ले सकता है |योग हमारे विचारों को मजबूती प्रदान कर हमारे रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है |योग के द्वारा हम मधुमेह ,तनाव ,स्थूलता ,उदर सम्बन्धी सभी विकार से मुक्त हो सकते है |पर यदि हमारे शरीर में हमारा उदर सही है तो किसी रोग का प्रश्न ही नहीं उठता |

वास्तु शास्त्र :-वास्तु इसका सम्बन्ध हमारे गृह से है |मकान ,दूकान ,भवन ,देवालय आदि से जुड़ा एक वैदिक विज्ञानं जिसमे चयनित भूखंड की शुभता -अशुभता का पूर्ण अध्यन कर निर्माण की प्रक्रिया को एक उन्नत दिशा दिया जाता है |एक पौधे के विकाश के लिए भी भूमि का उन्नत होना न होना बहुत माने रखता है |वही घर जहाँ हम एक खुशहाल परिवार ,उन्नत स्वास्थ,रोजगार ,स्वस्थ परिवार ,सुख -दुःख की इच्छा रखते है वहां  वास्तु  सम्मत निर्माण महत्वपूर्ण हो जाता है |यह विषय अपने आप में शोधपरक और व्यवहारिक हो जाए तो यह अपने आप में जनउपयोगी विषय है |

रत्न परिचय /शास्त्र :-आपने कभी इन्द्रधनुष को गौर से देखा है ?सात रंगों से घिरा एक अर्ध चंद्राकार वलय वास्तव में यह आकाश की अनुपम झटा तो है ही साथ ही प्रकाश से निर्मित सतरंगी आसमान की नीली आभा भी है |जल ,थल .अग्नि .वायु और आकाश से बना यह संसार अपने आप में रहस्यमई तो है ही साथ ही भूमि में छिपा दिव्या रत्नों का साम्राज्य भी अपने आप में अलौलिकता को प्रकट करता  है |प्रकाश से परावर्ती किरणों की सूक्ष्म रश्मिया ग्रहों की अनुकूलता -प्रतिकूलता लिए रत्नों के माध्यम से हमारे  शरीर के आंतरिक रक्त एवं मज्जा को पुष्ट करने में सहायक होती है |शुभ रत्नों का चयन हमारे जन्मकालीन ग्रहों ,राशियों के अनुरप किया जाए तो इसके सही परिणाम हमे आसानी से प्राप्त हो जाते है |रत्नों का विज्ञान भी अपने आप में शोधपरक विषय है |

अध्यात्म :-आत्मा का अध्यन ही अध्यात्म है |अध्यात्म अर्थात स्वयं को जानने का विज्ञान |इस संसार में हर व्यक्ति अपने शरीर और आत्मा के  साथ दोहरा जीवन जी रहा है |कई बार परिस्थितिया इतनी प्रतिकूल बन जाती है जहाँ मनुष्य न चाहते हुए भी पद्भ्रष्ट हो जाता है |अध्यात्म और भौतिकता के बीच फंस कर या तो विक्षिप्त हो जाता है या देहत्याग देता है कारण इन दोनों परिपाटियो को समझने में अल्पज्ञता |भौतिकता जीवन में सुखसाधानो में वृद्धि तो कर सकता है पर शांति नहीं दे सकता |मन की शांति ,मन की प्रसन्नता ही अध्यात्म है |जो जीवन को समान्य से उचाई पर तो लाता ही है साथ ही मनुष्य जीवन को पूर्णता प्रदान करता है |हमारे ऋषियों ने इस विधा को अपने जीवन उतारा ही नहीं बल्कि इस चराचर जगत में स्थापित भी किया है |

जड़ी -बूटिया:-हमारे मनीषियों की महान  देन दुर्लभ जड़ी बूटिया है जिसे अश्वनी कुमारो ने स्वर्ग से धरती पर उतार ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में संचारित भी किया हमारे ऋषियों ने इन्ही जड़ीबूटियो के माध्यम से ओषधि निर्माण कर व्यवहारिक जीवन में आमतौर में लगने वाले आधिय -व्याधि का निवारण  भी खोज निकाला |आयुर्वेद द्वारा भगवान् धन्वन्तरी ने स्वयं इस शोधपरक ज्ञान को स्थापित किया |जों पौराणिक काल से लेकर वर्तमान काल में भी अपनी जनउपयोगिता को सिद्ध करता आ रहा है |
इस प्रकार आप देख सकते हमारे महान ऋषियों ने मानव जीवन के सर्वागीण विकाश के लिए किस तरह प्रन्चविधाओ का निर्माण किया है |

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